आमला ब्लॉक से 9 किलोमीटर दूर ग्राम छावल में स्थित मां रेणुका धाम श्रद्धालुओं की आस्था का बड़ा केंद्र माना जाता है। नवरात्र में यहां रोजाना हजारों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं। खास बात यह है कि यहां मां रेणुका दिन में तीन अलग-अलग स्वरूपों में दर्शन देती हैं। सुबह होते ही मां नन्हीं बालिका के रूप में नजर आती हैं, दोपहर में उनके चेहरे का तेज बढ़ जाता है और वे युवती स्वरूप में दिखती हैं, जबकि शाम होते ही मां ममतामयी और करुणामयी रूप में दिखाई देती हैं। यह चमत्कार सदियों से भक्तों के लिए आस्था का विषय बना हुआ है। मंदिर के पुजारी गणेश पुरी गोस्वामी बीते 55 साल से सेवा कर रहे हैं और वे बताते हैं कि मां के तीन स्वरूपों का अनुभव हर भक्त को होता है।
550 साल पुराना मंदिर, 60 साल से अखंड ज्योति जल रही
छोटे से पहाड़ी पर स्थित रेणुका धाम का इतिहास लगभग 550 साल पुराना माना जाता है। यहां मां की स्वप्रकट प्रतिमा विराजमान है। पुजारी गणेश पुरी गोस्वामी बताते हैं कि मंदिर में 60 साल से अखंड ज्योति प्रज्वलित है। नवरात्र के अवसर पर दूर-दराज से भक्त यहां पहुंचकर इस ज्योति में तेल डालते हैं और आशीर्वाद लेते हैं। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इस ज्योति का तेल शरीर पर लगाने से चर्म रोग भी दूर हो जाते हैं। नवरात्र के दिनों में भक्त अखंड ज्योति के पास बैठकर माता के तीन स्वरूपों की आराधना करते हैं। मान्यता है कि सच्चे मन से दर्शन करने वाले की हर मनोकामना पूरी होती है। यहां मन्नत पूरी होने पर भक्त नीम गाड़ा खींचकर अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं।
सुविधाओं की कमी, श्रद्धालुओं को करना पड़ता है परेशानियों का सामना
मां रेणुका धाम में सालभर श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन शारदीय और चैत्र नवरात्र में यहां रोजाना हजारों की भीड़ जुटती है। पर्यटन विभाग ने लगभग 5 साल पहले यहां 40 लाख रुपए की लागत से श्रद्धालुओं के लिए चबूतरा, टिन शेड और रेलिंग का निर्माण कराया था। हालांकि आज भी यहां बुनियादी सुविधाओं की कमी बनी हुई है। व्यवस्थित दुकानों और पेयजल की सुविधा न होने से श्रद्धालुओं को खासी परेशानी का सामना करना पड़ता है। मंदिर परिसर में टीन शेड और कॉम्प्लेक्स की भी दरकार है। ग्रामीणों और भक्तों का कहना है कि प्रशासन अगर स्थायी व्यवस्था करे तो यहां आने वाले श्रद्धालुओं को बड़ी राहत मिलेगी। वहीं मंदिर प्रबंधन का भी कहना है कि बढ़ती भीड़ को देखते हुए सुविधाएं बढ़ाना जरूरी है।